प्रेम क्या है
जीवन ही प्रेम है।
अहं का आत्मा, असत्य का सत्य, होने का न होना,
गूढ़ का निगूढ़, आकार का निराकार, मूर्त का अमूर्त।
अहं का राम, बंधन का मुक्ति —
इन सबकी चाहना ही प्रेम है।
मेरे केंद्र में आत्मप्रेम है,
और मेरे सारे कर्म आत्मा की अभिव्यक्ति मात्र हैं।