अहम का अस्तित्व और उसकी निरर्थकता

जानो कि “अहम” है ही नहीं। मिटाओगे उसको जो है, अहम तो है ही नहीं। साक्षी की तरह तन और उसके खेल को देखो।

ज्ञान में जान लेते हैं कि कोई है या नहीं। न मिटने वाला है, न मिटाने वाला है।

“मैं” अहंकार को मिटाने का संकल्प कर रहा था, लेकिन “मैं” तो है ही नहीं। इसकी निरर्थकता को देखो।