शून्यता में ही सतानंदप्रेम है, छोड़ो सारे भेद

शून्य खोजे अपनी पूर्णता को, हर दिन बदले भेष।
न देखे कभी अपनी शून्यता को, घूमे देश–विदेश।
कहे हरेंद्र सुनो भाई साधो,
शून्यता में ही सतानंदप्रेम है, छोड़ो सारे भेद।