जिस तन लगिआ इश्क़ कमाल
जिस तन लगिआ इश्क़ कमाल,
नाचे बेसुर ते बेताल।
दरदमन्द नूं कोई न छेड़े,
जिसने आपे दुःख सहेड़े।
जम्मणा जीणा मूल उखेड़े,
बूझे अपणा आप खिआल।
जिस तन लगिआ इश्क़ कमाल,
नाचे बेसुर ते बेताल।
जिसने वेश इश्क़ दा कीता,
धुर दरबारों फतवा लीता।
जदों हजूरों प्याला पीता,
कुछ न रह्या सवाल-जवाब।
जिस तन लगिआ इश्क़ कमाल,
नाचे बेसुर ते बेताल।
जिसदे अन्दर वस्स्या यार,
उठिया यार ओ यार पुकार।
ना ओह चाहे राग न तार,
ऐवें बैठा खेडे हाल।
जिस तन लगिआ इश्क़ कमाल,
नाचे बेसुर ते बेताल।
बुल्हिआ शाह नगर सच पाया,
झूठा रौला सब्ब मुकाया,
सच्चियां कारण सच्च सुणाया,
पाया उसदा पाक जमाल।
जिस तन लगिआ इश्क़ कमाल,
नाचे बेसुर ते बेताल।
~ बाबा बुल्लेशाह
“जिस तन लगिआ इश्क़ कमाल, नाचे बेसुर ते बेताल।”
- जिस तन लगिआ इश्क़ कमाल → जिस व्यक्ति को परम प्रेम (ईश्वर प्रेम) लग जाता है
- नाचे बेसुर ते बेताल → वह व्यक्ति सुर और ताल की चिंता किए बिना झूम उठता है
भावार्थ: जब सच्चा प्रेम दिल में उतरता है, तो इंसान होश खो देता है — वह किसी सामाजिक ढांचे, नियम या मर्यादा की परवाह नहीं करता। वह तो बस प्रभु प्रेम में मग्न हो जाता है।
“दरदमन्द नूं कोई न छेड़े, जिसने आपे दुःख सहेड़े।”
- दरदमन्द नूं कोई न छेड़े → जो खुद दर्द में होता है, उसे कोई और चोट नहीं पहुंचा सकता
- जिसने आपे दुःख सहेड़े → जिसने खुद अपने जीवन में दुःखों को झेला हो
भावार्थ: जिसने स्वयं दुःख झेले हैं, वह दूसरों की चोट से अप्रभावित रहता है। वह भीतर से मज़बूत हो जाता है।
“जम्मणा जीणा मूल उखेड़े, बूझे अपणा आप खिआल।”
- जम्मणा जीणा मूल उखेड़े → जिसने जन्म और जीवन के मूल अर्थ को ही उखाड़ फेंका
- बूझे अपणा आप खिआल → और जिसने अपने अंदर झाँककर खुद को पहचान लिया
भावार्थ: आत्मचिंतन के मार्ग पर चलने वाला इंसान, जन्म और जीवन के पारंपरिक अर्थों को छोड़कर, अपनी आत्मा की सच्चाई को जान लेता है।
“जिसने वेश इश्क़ दा कीता, धुर दरबारों फतवा लीता।”
- जिसने वेश इश्क़ दा कीता → जिसने प्रेम का मार्ग और रूप अपनाया
- धुर दरबारों फतवा लीता → उसे ऊपर से (ईश्वर की ओर से) मान्यता मिली, भले ही दुनिया ने उसे तिरस्कृत किया
भावार्थ: प्रेम का मार्ग अपनाने वालों को दुनिया पागल समझती है, पर ईश्वर उन्हें अपनाता है। सच्चा इश्क़ ऊपर से ही स्वीकृत होता है।
“जदों हजूरों प्याला पीता, कुछ न रह्या सवाल-जवाब।”
- जदों हजूरों प्याला पीता → जब उसने प्रभु की उपस्थिति में प्रेम का प्याला पी लिया
- कुछ न रह्या सवाल-जवाब → तब सारे सवाल-जवाब खत्म हो गए
भावार्थ: जब आत्मा ईश्वर से जुड़ जाती है, तो तर्क, शंका, बहस सब समाप्त हो जाते हैं — केवल अनुभव और प्रेम रह जाता है।
“जिसदे अन्दर वस्स्या यार, उठिया यार ओ यार पुकार।”
- जिसदे अन्दर वस्स्या यार → जिसके भीतर ही ईश्वर (प्रियतम) बस गया
- उठिया यार ओ यार पुकार → वह हर समय उसी यार (ईश्वर) को पुकारता है
भावार्थ: जब ईश्वर हृदय में बस जाता है, तो हर क्षण, हर श्वास उसी की पुकार बन जाती है।
“ना ओह चाहे राग न तार, ऐवें बैठा खेडे हाल।”
- ना ओह चाहे राग न तार → उसे न संगीत चाहिए, न कोई साधन
- ऐवें बैठा खेडे हाल → वह बस मौन बैठकर उस परम अवस्था को जीता है
भावार्थ: सच्चे प्रेम में डूबा व्यक्ति किसी बाहरी साधना या प्रदर्शन की ज़रूरत महसूस नहीं करता — वह भीतर ही परम स्थिति में लीन होता है।
“बुल्हिआ शाह नगर सच पाया, झूठा रौला सब्ब मुकाया।”
- बुल्हिआ शाह नगर सच पाया → बुल्ले शाह ने अपने भीतर सत्य का नगर (आत्मिक स्थिति) पाया
- झूठा रौला सब्ब मुकाया → और सभी झूठे शोर-शराबे (धार्मिक दिखावे) को समाप्त कर दिया
भावार्थ: जब भीतर सच्चाई मिल जाती है, तो बाहर का हर दिखावा, तर्क, बहस निरर्थक हो जाता है।
“सच्चियां कारण सच्च सुणाया, पाया उसदा पाक जमाल।”
- सच्चियां कारण सच्च सुणाया → बुल्ले शाह ने सत्य के कारण ही सत्य को जाना और बताया
- पाया उसदा पाक जमाल → और ईश्वर की पवित्र सुंदरता (जमाल) को पा लिया
भावार्थ: सच्चे प्रेम और आत्मिक मार्ग पर चलकर ही ईश्वर की सुंदरता का अनुभव किया जा सकता है — और बुल्ले शाह ने वही पाया।
🪔 संपूर्ण भावार्थ:
बुल्ले शाह की यह काफ़ी कहती है कि सच्चा प्रेम — ईश्वर से, गुरु से, या आत्मा से — जब हृदय को छूता है, तो इंसान सारी दुनिया से बेपरवाह हो जाता है। वह कोई साधना, रीति, संगीत नहीं चाहता — वह बस उस प्रेम में डूबा होता है। प्रेम में डूबने वाला समाज से अलग दिखता है, लेकिन वही वास्तव में सच्चाई को जानने वाला होता है। बुल्ले शाह ने यह सत्य अपने भीतर पाया, और दुनिया के झूठे शोर से ऊपर उठकर ईश्वर की पवित्र सुंदरता को अनुभव किया।