मोको कहां ढूंढे रे बंदे, मैं तो तेरे पास में

मोको कहां ढूंढे रे बंदे, मैं तो तेरे पास में । मोको कहां ढूंढे रे बंदे, मैं तो तेरे पास में

ना तीरथ में ना मूरत में, ना एकांत निवास में । ना मंदिर में, ना मस्जिद में, ना काबे कैलाश में । मैं तो तेरे पास में …

ना मैं जप में, ना मैं तप में, ना मैं व्रत उपवास में । ना मैं क्रिया क्रम में रहता, ना ही योग संन्यास में । मैं तो तेरे पास में …

नहीं प्राण में नहीं पिंड में, ना ब्रह्माण्ड आकाश में । ना मैं त्रिकुटी भवर में, सब स्वांसो के स्वास में । मैं तो तेरे पास में …

खोजी होए तुरंत मिल जाऊं, एक पल की ही तलाश में । कहे कबीर सुनो भाई साधो, मैं तो हूँ विश्वास में । मैं तो तेरे पास में …

~ कबीर साहब