नैहरवा हमका न भावे

दुनिया किसी को भी पसंद नहीं होती । सबसे सुंदर के आत्मा और मेरा मन भी वही है ।

नैहरवा हमका न भावे
हमका न भावे
नैहरवा…

साईं की नगरी परम अति सुन्दर,
जहाँ कोई जाए ना आवे
चाँद सूरज जहाँ पवन न पानी,
कौ संदेस पहुँचावै
दरद यह साईं को सुनावै
नैहरवा…

आगे चलौ पंथ न सूझे, पीछे दोष लगावै
कहि बिधि ससुरे जाऊँ मोरी सजनी,
बिरहा जोर जरावै
विषय रस नाच नचावै
दरद यह साईं को सुनावै
नैहरवा…

बिन सतगुरु आपनो नहिं कोई,
जो यह राह बतावै
कहत कबीर सुनो भाई साधो,
सपने में प्रीतम आवै
तपन यह जिया की बुझावै
नैहरवा…

~ कबीर साहब