साधो ये मुर्दों का गाँव
क्या तुम मृत्यु, ASI, या अस्तित्व की निरर्थकता से डरते हो? सुनो और समझो कि यह मुर्दों का गाँव है। तुम मरोगे — और इसी वजह से तुम अमर हो।
इसे हर जन्मदिन पर सुने ।
माटी कहे कुम्हार से “तू क्या रोंदे मोहे, एक दिन एसा आएगा मैं रोन्दुंगी तोहे”
साधो रे, ये मुर्दों का गाँव।
पीर मरे पैगम्बर मरी है, मरी है जिंदा जोगी,
राजा मरी है परजा मरी है, मरी है बैद और रोगी,
साधो रे, ये मुर्दों का गाँव।।चंदा मरी है सूरज मरी है, मरी है धरनी आकासा,
चौदह भुवन के चौधरी मरी है, इन्हों की का आसा,
साधो रे, ये मुर्दों का गाँव।।नौहूँ मरी है दसहुँ मरी है, मरी है सहज अठासी,
तैंतीस कोटि देव मरी है, बड़े काल की बाजी,
साधो रे, ये मुर्दों का गाँव।।नाम अनाम अनंत रहत है, दूजा तत्व न होई,
कहे कबीर सुनो भाई साधो, भटक मरो मत कोई,
साधो रे, ये मुर्दों का गाँव।।~ कबीर साहब
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